Jaya Ekadashi 2021-जानिए तिथि, पारण समय, पूजा विधि, महत्व,कथा।
Jaya Ekadashi 2021-हिन्दू धर्म में एकादशी एक बहुत ही महत्वपूर्ण व्रत माना गया है ! भगवान श्री कृष्ण ने इसे व्रतों में राजा कहा है, वर्ष के सभी एकादशी का अपना एक महत्व है। माघ माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी को जया एकादशी के नाम से जाना जाता है। इस एकादशी को अजा एकादशी भी कहते हैं। इस वर्ष यह एकादशी 23 फेब्रुअरी को मनाई जाएगी। शास्त्रों के अनुसार इस एकादशी का व्रत करने से मनुष्य को भूत-प्रेत पिशाच की योनि से मुक्ति मिल जाती है।
Jaya Ekadashi |
इस एकादशी का नाम जया एकादशी इसलिए है, क्यूंकि इस व्रत के प्रभाव से मनुष्य को प्रत्येक काम में जीत की प्राप्ति होती है ! क्या आप जानते हैं जया एकादशी व्रत क्यों किया जाता है ? इस व्रत का क्या महत्त्व और क्या कथा है ? आइए जानते हैं जया एकादशी तिथि, शुभ मुहूर्त, व्रत विधान, पारण समय, इस व्रत का महत्त्व और कथा।
Jaya Ekadashi 2021 date /जया एकादशी 2021 कब है ?
23 february 2021
जया एकादशी 2021 शुभ मुहूर्त
एकादशी तिथि प्रारम्भ -22 फेब्रुअरी 2021 - सोमवार शाम 5 : 16 मिनट से
एकादशी तिथि समाप्त -23 फेब्रुअरी 2021 -मंगलवार शाम 6 : 5 मिनट तक
Jaya Ekadashi 2021 fast breaking time /जया एकादशी पारण समय
बुधवार सुबह 06 बजकर 51 मिनट से लेकर सुबह 09 बजकर 09 मिनट तक
पारण अवधि : 2 घंटा 17 मिनट तक
Jaya Ekadashi Puja Vidhi/जया एकादशी पूजा विधि
- जया एकादशी के दिन जगदीश्वर भगवान विष्णु की पूजा होती है।
- दशमी को एक समय सात्विक आहार करना चाहिए, एकादशी तिथि को स्नान अदि से निवृत होकर व्रत का संकल्प लें ,
- श्री हरी को पिले फूल अर्पित करें और धुप, दीप, तिल, चन्दन, पंचामृत अर्पित करें।
- एकादशी के दिन विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ अवश्य करें।
- इस दिन जागरण का विशेष महत्त्व होता है।
- द्वादशी के दिन ब्राह्मण को उचित दान दक्षिणा देकर विदा करें, और व्रत पारण मुहूर्त में ही खोलें।
जया एकादशी महत्त्व
- जया एकादशी का व्रत करने से नीच योनि से मुक्ति मिल जाती है।
- इस व्रत के प्रभाव से मनुष्य के दुःख दूर हो जाते हैं और धन संपत्ति प्राप्त होता है।
- इस व्रत के महात्मय से मोक्ष की प्राप्ति होती है.
- जो व्रती सच्चे मन से यह व्रत करता है उसका भाग्य उदय हो जाता है, और दोष दूर हो जाते हैं।
Jaya Ekadashi katha /जया एकादशी व्रत कथा
एक समय धर्मराज युधिष्ठिर ने भगवान कृष्ण से आग्रह किया की हे प्रभु ! कृपया मुझे माघ माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी का महात्मय और कथा बताएं ! जो जया एकादशी की कथा भगवान कृष्ण ने सुनाई थी वह इस प्रकार है. भगवान श्री कृष्ण ने कहा हे राजन ! माघ माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी को जया एकादशी कहते हैं, इसका व्रत करने से मनुष्य के ब्रह्म हत्यादि पाप कट जाते हैं। इस व्रत के प्रभाव से भूत, पिशाच योनियों से मुक्ति हो जाती है। इस व्रत के पुण्य प्रभाव से जीवन के हर एक क्षेत्र में विजय प्राप्त होती है। पद्मपुराण में वर्णित कथा इस प्रकार है।
देवराज इंद्र की सभा में उत्सव चल रहा था, इस उत्सव में देवगण, संत, दिव्य पुरुष उपस्थित थे। उत्सव में गंधर्व गान कर रहे थे और गंधर्व कन्या नृत्य कर रही थी। इस उत्सव में माल्यवान नामक एक गंधर्व था जो बहुत सुरीला गाता था ,उसपर पुष्पवती नामक गंधर्व कन्या मोहित हो गयी, वह अत्यंत सूंदर थी , माल्यवान को देखकर वह नृत्य करने लगी और अपने हाव भाव से उसे रिझाने लगी। दोनों एक दूसरे को देखकर सूझ बुझ खो बैठते हैं। और माल्यवान अपने सुर ताल से भटक जाता है। वे सुर और ताल के विपरीत गाने लगे जिससे उत्सव में संगीत का आनंद बिगड़ जाता है।
देवराज इंद्र का श्राप
संगीत एक पवित्र साधना है, इस साधना को भ्रष्ट करना पाप है. इससे इंद्र क्रोधित हो गए और उन्होंने पुष्पवती और माल्यवान को श्राप दे दिया। और कहा की तुम दोनो ने देवी सरस्वती का अपमान किया है ! इस सभा में अनैतिक प्रदर्शन करके मेरा ही नहीं, यहां उपस्थित गुरुजनों का भी अपमान किया है ! अब तुम दोनो स्त्री-पुरुष के रूप में मृत्यु लोक में जाकर पिशाच योनि में अपने कर्म के फल भोगो।
इंद्र का श्राप सुनकर वे दोनों अत्यंत दुखी हुए और हिमालय पर्वत पर पिशाच योनि में दुःख पूर्वक जीवन व्यापन करने लगे। उन्हें गंध, रस, तथा स्पर्श का कुछ भी बोध नहीं था। उन दोनों को न रात को नींद अति थी न दिन को ,जैसे जैसे दिन बीत रहे थे उनके कष्ट बढ़ते ही चले जा रहे थे। उस जगह अत्यंत शीत था, जिसके कारण उनके रोंगटे खड़े रहते थे और ठंढ के कारण उनके दांत भी बजते रहते थे ! एक दिन दोनों पिशाच आपस में चर्चा कर रहे थे , की पिछले जन्म में हमने न जाने कौन सा पाप किया था जो हमे इतना दुःख दायी पिशाच योनि प्राप्त हुई है ? ऐसे अनेक विचार उनके मन में आते रहे।
माल्यवान और पुष्पवती की पिशाच योनि से मुक्ति
दिन बीत गए और एक दिन माघ मास में शुक्ल पक्ष एकादशी तिथि आ गयी, दोनों ने निराहार रहकर दिन गुज़ारा और न ही कोई पाप कर्म किया। संध्या काल पीपल वृक्ष के निचे बैठ कर भगवान विष्णु का स्मरण करते रहे। अत्यंत ठंढ के कारण शीत के मारे वे दोनों सो नहीं पाए। दूसरे दिन प्रातः उन दोनों को इसी पुण्य प्रभाव से पिशाच योनि से मुक्ति मिल गयी और पुनः अपनी सूंदर अप्सरा और गंधर्व की देह धारण करके स्वर्ग लोक चले गए। उस समय देवताओं ने दोनों पर पुष्प वर्षा की और देवराज इंद्र ने भी उन्हें क्षमा कर दिया।
इस व्रत के बारे में श्री कृष्ण स्वयं कहते हैं। एकादशी का व्रत करना सभी यज्ञ, जप, दान, अदि के सामान है।
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