Saphala Ekadashi 2021-यज्ञ करने से भी ज्यादा फल देता है यह व्रत, ऐसे करें पूजा।
Saphala Ekadashi 2021 - पौष माह के कृष्ण पक्ष की एकादशी को सफला एकादशी कहा जाता है, यह एकादशी अंग्रेजी केलिन्डर के अनुसार जनवरी या दिसंबर के महीने में आती है. पुराणों के अनुसार यह एकादशी अत्यंत कल्याण करने वाली समस्त व्रत में श्रेष्ठ है. इस लेख में जानेंगे सफला एकादशी तिथि, दिन, शुभ मुहूर्त व्रत का महत्व, पूजा विधि,पारण का सही समय और कथा ।
Tulsi puja kaise karein aur kya hai pratidin tulsi puja ke niyamSaphala Ekadashi |
Saphala Ekadashi 2021 Date /सफला एकादशी तिथि
सफला एकादशी तिथि - 30 december (thursday) 2021
Saphala Ekadashi muhurat 2021
एकादशी तिथि प्रारंभ - 29 december - 04:12 PM से
एकादशी तिथि समाप्त - 30 december - 01 :40 PM तक
पारण समय सफला एकादशी
सफला एकादशी क्या है?
सफला शब्द से ही इस शब्द का अर्थ प्रतीत होता है सफल, समृद्ध होना आगे बढ़ना, जो व्यक्ति जीवन में आगे बढ़ना चाहते हैं, उनके लिए सफला एकादशी का व्रत करना सबसे उत्तम है. यह व्रत करने से सौभाग्य, धन, समृद्धि, सफलता, और वृद्धि के द्वार खोलने का संकेत है. पद्म पुराण के अनुसार भगवान श्री कृष्ण ने कहा था कि बड़े बड़े यज्ञों से भी उन्हें उतना संतोष नहीं होता, जितना की एकादशी व्रत के अनुष्ठान से होता है. इसीलिए एकादशी व्रत अवश्य करना चाहिए।
Ekadashi |
Saphala Ekadashi puja vidhi /सफला एकादशी पूजा विधि
- एकादशी व्रत दशमी तिथि से शुरू हो जाता है, दशमी तिथि पर सूर्यास्त से पहले ही सात्विक भोजन करना चाहिए।
- सफला एकादशी का व्रत भगवान श्री हरी को समर्पित है।
- व्रती को प्रातः काल ब्रह्म मुहूर्त में स्नान करके पूजा की तयारी करनी चाहिए।
- पूजा स्थल को स्वच्छ करके भगवान विष्णु की प्रतिमा को स्थापित करें।
- पुष्प लेकर व्रत का संकल्प लें।
- श्री हरी को पिले फूल, तुलसी के पत्ते, धुप, दीप, सुपारी, अनार, फल, नारियल, आंवला अदि अर्पित करें।
- पूजा के बाद आरती करें,
- रात्रि को जागरण करें और श्री हरी के नाम के भजन और कीर्तन करें।
- अगले दिन यानि की द्वादशी के दिन सुबह पूजा करके, गरीबों और ब्राम्हणों को भोजन कराएं ,
- उन्हें दान दक्षिणा देकर विदा करें।
- व्रत पारण मुहूर्त में ही खोलें।
- सफला एकादशी की कथा सुनें और पढ़ें।
Saphala Ekadashi 2021 Significance/सफला एकादशी का महत्व।
- सफला एकादशी का महत्व पद्म पुराण में वर्णित श्री कृष्ण और युधिष्ठिर के बीच बातचीत है,
- श्री कृष्ण ने युधिष्ठिर से कहा है की 1 हज़ार अश्वमेघ यज्ञ मिलकर भी इतना लाभ नहीं दे सकते जितना की सफला एकादशी का व्रत रखने से मिलता है।
- भगवान ने युधिष्ठिर को बताया है की सफला एकादशी व्रत के देवता श्री नारायण हैं।
- जो व्यक्ति एकादशी का व्रत विधि विधान से रखता है,, व जागरण करता है,उनका व्रत सफल हो जाता है।
- इस व्रत की महिमा से व्यक्ति के दुःख समाप्त हो जाते हैं और वह अपने जीवन में सफलता की ओर बढ़ते हैं।
- सफला एकादशी का व्रत रखने से व्यक्ति की सारी इच्छाएं पूर्ण होती हैं, और मृत्यु के पश्चात् वह स्वर्ग लोक को जाता है।
एकादशी मंत्र
1)ॐ नमो भगवते वासुदेवाय नमः
2)हरे कृष्ण हरे कृष्ण, कृष्ण कृष्ण हरे हरे, हरे राम हरे राम, राम राम हरे हरे।
एकादशी पर क्या करें क्या न करें
- एकादशी के दिन किसी वृक्ष या पौधे की फूल पत्ती नहीं तोड़नी चाहिए।
- व्रती को क्रोध नहीं करना चाहिए व मधुर वचन बोलने चाहिए।
- व्रत के दिन दातुन नहीं करना चाहिए, निम्बू, जामुन, या आम के गिरे हुए पत्ते चबा लें और ऊँगली से कंठ साफ़ कर लें। या पानी से बारह बार कुल्ले कर लें।
- व्रती को ज़मीन पर ही सोना चाहिए।
- एकादशी के दिन घर में झाड़ू नहीं लगाना चाहिए क्योंकी चींटी, या सूक्ष्म जीवों की मृत्यु का भय रहता है।
- एकादशी के दिन व्रती को गाजर, शलगम, गोभी, पालक अदि का सेवन नहीं करना चाहिए।
- प्रत्येक वास्तु में तुलसीदल छोड़कर भोग लगाना चाहिए उसके बाद ही ग्रहण करें।
- एकादशी के दिन गीता का अध्ययन अवश्य करना चाहिए।
Saphala Ekadashi vrat Katha /सफला एकादशी व्रत कथा.
प्राचीन समय में चम्पावती नगरी में महिष्मान नामक राजा राज्य करता था। उनके चार पुत्र थे, उनमें से सबसे बड़ा पुत्र लुम्पक बड़ा पापी व दुष्ट था। अपने पिता के धन को हमेशा बुरे कार्यों में ही नष्ट करता था। वह देवता, ब्राम्हण, वैष्णव की निंदा करता था। जब राजा को इस बात का पता चला तब उन्होंने लुम्पक को राज्य से निकाल दिया, लेकिन फिर भी उसकी लूट पाट की आदत नहीं छूटी, वह दिन में जंगल में एक प्राचीन पीपल के वृक्ष के निचे रहता और रात्रि में पिता के नगरी में जाकर चोरी, लूट पाट और अन्य बुरे कार्य करता था। जब वह पकड़ा जाता तब राजा का पुत्र मान कर पहरेदार उसे छोड़ देते थे।
दिन में लुम्पक शिकार करता था और रात में लूट पाट. पौष माह की कृष्ण पक्ष की दशमी तिथि को वह सीत के कारण मूर्छित हो गया, तीन दिन से कुछ भोजन न मिलने के कारण उसका शरीर कमज़ोर पड़ गया था. अगले दिन सूर्य की गर्मी पाकर उसकी मूर्छा दूर हुई, उस दिन वह शिकार करने नहीं गया, किसी तरह गिरते पड़ते वह भोजन की तलाश में निकला। वन में उसे कुछ गिरे हुए फल मिले, फल लेकर उसने पीपल के वृक्ष की जड़ के पास रख दिया।जिसे जीवों का मॉस खाने की आदत हो वो कहाँ फल खाएगा।वो दुखी होकर बोला "हे प्रभु !यह फल आप को ही अर्पित हैं ! इन फलों से आप ही तृप्त हों ! उस रात उसे नींद आई, इस प्रकार उससे अनजाने में सफला एकादशी का व्रत हो गया।
उस पापी की उपवास जागरण से श्री हरी प्रसन्ना हो गए, और उसके सारे पाप नष्ट हो गए. दूसरे दिन प्रातः काल एक अतिसुन्दर घोड़ा अनेक सूंदर वस्तुओं से सजा हुआ उसके सामने आकर खड़ा हो गया और आकाशवाणी हुई कि हे राजा पुत्र ! श्री नारायण की कृपा से तेरे सारे पाप नष्ट हो गए हैं. अब तू अपने पिता के पास जाकर राज्य प्राप्त कर ! ऐसी वाणी सुनकर वह अत्यंत प्रसन्ना हुआ और दिव्य वस्त्र धारण करके " भगवान आपकी जय हो "कहकर अपने पिता के पास गया, उसके पिता ने प्रसन्न होकर उसे समस्त राज्य का भार सौंप दिया और निश्चिन्त होकर वन में तपस्या करने चले गए।
अब लुम्पक शास्त्रानुसार राज्य करने लगे और उनकी स्त्री, पुत्र अदि भी श्री विष्णु के परम भक्त बन गए. वृद्ध होने पर वह भी अपने पुत्र को राज्य का भार सौंपकर तपस्या करने चला गया और अंत में वैकुंठ को प्राप्त हुआ।
इस कथा का सार यह है की जो मनुष्य सफला एकादशी का व्रत करता है, उसे अंत में मुक्ति मिलती है, व्रत के महात्मय को पढ़ने से अथवा श्रवण करने से मनुष्य को अश्वमेघ यज्ञ का फल मिलता है।
Navratri 2021 date-शरद नवरात्री कलश स्थापना शुभ मुहूर्त, विधि, मंत्र,सामग्री के साथ
Comments
Post a Comment