10 MAHABHARAT LESSONS-To move forward on the path of success
Mahabharat Lessons-10 Life Lessons From Mahabharatमहाभारत से मिलते हैं यह 10 सीख जो आत्मविश्वास के साथ सफलता की राह पर आगे बढ़ना सिखाती हैं।
जैसा की हम जानते हैं की महाभारत में दुर्योधन के मामा शकुनि ने किस तरह दुर्योधन के मन में हमेशा पांडवों क लिए दुश्मनी के बीज बोए ,दुर्योधन इतना बुरा नहीं था परन्तु शकुनि ने उसे सिंघासन के लिए पांडवों के विपरीत षडियंत्र रचाना सिखाया।
जैसे की भीम को बचपन में उसने विष पिलाया पर कहते हैं "जाके रखे साइयाँ मार सके न कोई " भीम विष पी कर भी बच गया , उसके बाद लाक्षाग्रह की घटना दुर्योधन ने षडियंत्र रचा पांडवों और कुंती को लाक्षाग्रह में जला ने की पर वह उसमें भी विफल रहा और पांडव अपनी माता कुंती समेत वहां से बच निकले , पर जब चौसर का खेल रचा गया तब युधिष्ठिर उसमें फसते चले गए और जुए में वे सब कुछ हार गए यहां तक की पत्नी पांचाली को भी हार गए , और युद्ध जैसी परिस्तिथि बन गयी और अंत में दुर्योधन मारा गया और युधिष्ठिर हस्तिनापुर के राजा बन गए ,महाभारत से यह सीख मिलती है की संगत अच्छी रक्खो शकुनी की संगत के कारण दुर्योधन को न राज मिला और उसकी जान भी चली गयी।
2)युधिष्ठिर की तरह जुआ मत खेलो -
महाभारत में न युधिष्ठिर जुआ खेलते न वो अपना राज पाठ इन्द्रप्रस्त हार जाते न द्रौपदी चीय हरण जैसी परिस्तिथि बनती न पांडव को द्रौपदी समेत 12 वर्ष का वनवास और 1 वर्ष का अज्ञातवास होता।
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3)कर्ण की तरह दुष्ट का एहसान मत लो -Mahabharat Lessons
कर्ण ने दुर्योधन का साथ सिर्फ इसलिए दिया क्यूंकि वो दुर्योधन के एहसानों तले दबा था ,जब समाज ने उसे ठुकराया था तब दुर्योधन ने उसकी तरफ मित्रता का हाथ बढ़ाया ,और यह जानते हुए भी की दुर्योधन एक गलत इंसान है और यह भी जानते हुए की पांडव उसके भाई हैं उसने अर्जुन को युद्ध में मारने की पूरी कोशिश की पर यह कोशिश सफल नहीं रही।
4)धृतराष्ट्र की तरह पुत्र मोह में मत पड़ो -
धृतराष्ट्र सिर्फ आँखों से अँधा नहीं था वो मन से भी अँधा था , वो जानता था की युधिष्ठिर हर तरह से राजा बनने योग्य था लेकिन फिर भी उसके मन में हमेशा से यही बात थी की दुर्योधन ही उसके बाद हस्तिनापुर का राजा बने।
5)कुंती की तरह अनुचित प्रयोग मत करो -
कुंती को ऋषि दुर्वासा से एक वरदान मिला , ऋषि दुर्वासा ने उन्हें एक मंत्र दिया जिसके प्रयोग से वो किसी भी देवता का ध्यान करके उन्हें आमंत्रित कर सकती थी लेकिन सिर्फ आवश्यकता पड़ने पर , कुंती ने सिर्फ यह जानने के लिए की मंत्र का उपयोग करनेसे क्या सच में देवता प्रकट होते हैं , विवाह से पहले ही उस मंत्र का प्रयोग कर लिया और सूर्य देव का ध्यान किया और सूर्य देव प्रकट हुए जिसका परिणाम यह हुआ की कुंती ने कर्ण को जन्म दिया और लोक उपहास के भय से 1 वर्ष तक साधना का बहना करके महल में कैद रही , 1 वर्ष के बाद अपने पुत्र को नदी में बहा दिया जो कर्ण के नाम से जाना गया।
इन्द्रप्रस्त में जब राजसूय यज्ञ का आयोजन किया गया था, तब यज्ञ समाप्त होने के बाद जब दुर्योधन चलते चलते गिर गए तब द्रौपदी दुर्योधन पर हस पड़ी और कहा की अंधे का पुत्र अँधा , बदले की भावना में दुर्योधन ने चौसर का खेल आयोजन किया और द्रौपदी का चीयर हरण होते होते रह गया।
7)दुर्योधन की तरह अनाधिकार हठ मत करो -
दुर्योधन के हठ ने उसे सिंघासन तो नहीं दिलाया बल्कि उसकी महाभारत युद्ध में अपने 100 भाइयों समेत जान भी गयी।
8)दुशाशन की तरह नारी का अपमान ना करो -
अपने भ्राता के कहने पर दुशाशन ने भरी सभा में द्रौपदी का चीर हरण करने की कोशिश की, इसके कारण भीम ने शपथ लिया की वो दुशाशन की छाती का लहू पिएगा और पांचाली को उसकी छाती का लहू लाकर देगा जिससे पांचाली अपने केश धोएगी।
9)द्रोणाचार्य की तरह अर्धसत्य पर विश्वाश मत करो -
अश्वत्थामा की झूठी मौत की खबर सुनकर द्रोणाचार्य ने अपने शस्त्र रख दिए जो की उनकी मौत का कारण बना।
महाभारत युद्ध में अर्जुन के साथ कृष्ण थे , कृष्ण की नारायणी सेना नहीं उनकी सेना दुर्योधन के साथ थी क्यूंकि जब युद्ध से पहले दुर्योधन और अर्जुन उनकी सहायता मांगने आये तब अर्जुन ने स्पष्ट रूप से कहा की मुझे आपकी नारायणी सेना नहीं बल्कि आप का साथ चाहिए , तब युधिष्ठिर मन ही मन प्रसन्न हो गया की उसे नारायणी सेना मिल गयी , वो मुर्ख ये नहीं जानता था की जिसके साथ स्वयं भगवान हैं उन्हें हराना नामुनकिन है ईश्वर सिर्फ सत्य के साथ रहते हैं और सत्य की कभी हार नहीं होती।
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